कुल्लूधर्म संस्कृतिबड़ी खबरहिमाचल प्रदेश
भगवान रघुनाथ की प्रतिदिन 6 आरती ,7 बार लगाया जाता है भोग-महेश्वर सिंह
कहा- 362 बर्षो से अयोध्या की पूजा पद्धति से हो रही भगवान रघुनाथ की पूजा अर्चनाभगवान रघुनाथ की प्रतिदिन 6 आरती ,7 बार लगाया जाता है भोग-महेश्वर सिंहकहा- 362 बर्षो से अयोध्या की पूजा पद्धति से हो रही भगवान रघुनाथ की पूजा अर्चनाभगवान रघुनाथ मंत्रोच्चारण के साथ पहनाएं जाते है आभूषण व वस्त्र हार श्रृंगारभगवान रघुनाथ को विधि विधान से करवाया जाता है तुंग दातुन पंचामृत स्नान देवी देवताओं की पंचोपचार के साथ की जाती है पूजा अर्चना एंकरअंतरराष्ट्रीय दशहरा देव महाकुंभ में भगवान रघुनाथ अयोध्या के प्राचीन पूजा पद्धति की तर्ज पर हर दिन छह बार आरती और 7 बार भोग लगाया जाता है। यही नहीं भगवान रघुनाथ को मंत्रोच्चारण के साथ दांतुन, शौच ,सनान वस्त्र व आभूषण हार श्रृंगार भी विधि विधान के साथ किया जाता है।जिससे हर दिन भगवान रघुनाथ की प्रातः पूजा मध्यान्ह पूजा साईं काल पूजा अर्चना की जाती है। भगवान रघुनाथ के साथ-साथ ,माता सीता, शालिग्राम, नरसिंह भगवान,व हनुमान का भी विधि विधान के साथ हार सिंगार किया जाता है। देवी देवताओं के अस्थाई शिविर में भी सुबह-शाम दो बार पूजा अर्चना की जाती है जिसमें पंचोपचार के साथ देवी देवताओं की देव वाद्य यंत्रों की धुनों पर पूजा अर्चना की जाती है वीओ- भगवान रघुनाथ के पुजारी दिनेश ने कहा कि भगवान रघुनाथ की मूर्ति अयोध्या से लाई है उन्होंने कहा कि वहीं से ही पूजा पद्धति की किताब लाई है। उन्होंने कहा कि भगवान रघुनाथ के मंदिर सुल्तानपुर में जिस प्रकार हर दिन प्रात पूजा मध्यान्ह पूजा चौथा पैर पूजा सायाकाल पूजा वॉच घड़ी जिसमें 6 आरतियां और 7 बार भोग लगाया जाता है उनका की बड़ी पूजा में भगवान रघुनाथ के प्रथम सेवक एवं छड़ी बरदार महेश्वर सिंह मंत्रोच्चारण के साथ हार सिंगार स्वयं करते हैं और साईं काल में भगवान रघुनाथ जी को कमलासन में बैठाया जाता है जहां पर चंद्रावली नृत्य का आयोजन किया जाता है। उन्होंने कहा की सुबह पूजा से पहले भगवान की जगाऊनी आरती की जाती है प्रातः पूजा संपन्न होने पर आरती होती है उसके बाद मध्यान पूजा के समय आरती की जाती है और 1:30 बजे के आसपास शैयन आरती की जाती है। उसके बाद 4:15 बजे चौथे पहर की आरती उसके बाद 8:30 बजे साईं काल की आरती और 9 बजे शेयन आरती होती है। उन्होंने कहा कि भगवान रघुनाथ की षोडशोपचार के साथ पूजा अर्चना की जाती है। उन्होंने कहा कि भगवान रघुनाथ को तुग की दातुन करवाई जाती है। उसके बाद पंचोपचार के साथ स्नान करवाया जाता है जिसमें शहद दूध दही जल के द्वारा स्नान किया जाता है। उसके बाद दस वर्ण पूजा होगी।षोडशोपचार की सभी विधियां से पूजा अर्चना होती है। वीओ- भगवान रघुनाथ के प्रथम सेवक एवं खड़ी ब्रदर महेश्वर सिंह ने कहा कि अयोध्या में 16 वी शताब्दी में भगवान रघुनाथ की पूजा अर्चना की विधि उस व्यक्ति को सी विधि से आज भी भगवान रघुनाथ की पूजा अर्चना की जाती है। उन्होंने कहा कि भूल के दामोदर गोसाई ने अयोध्या में 1 वर्ष रहकर वहां पर सभी प्रकार की विधियों को समझा और उसके बाद लिखित रूप से भी उस पूजा पद्धति को लाए थे उन्होंने कहा कि भगवान रघुनाथ की मूर्ति अयोध्या से चुरा कर लाए हैं और यहां पर लाने के बाद भगवान रघुनाथ 362 वर्षों पूरे विधि विधान के साथ पूजा अर्चना की जा रही है। उन्होंने कहा कि इस विधि के अनुसार भगवान को जगाने सोच कराने नहाने वस्त्र पहनने आभूषण पहनने के लिए मंत्रोच्चारण का प्रयोग किया जाता है उन्होंने कहा कि भगवान रघुनाथ जी को हर दिन अलग-अलग रंग के वस्त्र पहनाए जाते हैं इसमें सोमवार को सफेद और मंगलवार को लाल बुधवार को हरा वीरवार को पीला शुक्रवार को सफेद शनिवार को काले रंग का कपड़ा सजावट के साथ पहना जाता है उन्होंने कहा कि भगवान रघुनाथ के अस्त्र शस्त्र की पूजा अर्चना भी मंत्रोच्चारण के साथ की जाती है जिसमें हर अर्थशास्त्र को पूजा अर्चना की जाती है इसके अलावा भगवान रघुनाथ जी की पालकी सिंहासन की भी पूजा-अर्चना की जाती है उनका किए गौरव की बात है कि आज अयोध्या में यह पत्ती खत्म हो गई है लेकिन देव भूमि कुल्लू जिला में इस पद्धति को जीवित रखा है और भगवान रघुनाथ की देन है कि यहां पर अयोध्या किस पद्धति के साथ पूजा अर्चना की जाती है।वीओ- माता ज्वाला के पुजारी जोगिंदर शर्मा ने कहा कि अस्थाई शिविरों में देव बातें यंत्रों की धुनों पर पंचोपचार से पूजा-अर्चना सुबह शाम की जाती है और विकास की दशहरा उत्सव में आने वाले सभी देवताओं का स्थान बना हुआ जहां पर अस्थाई शिविर लगे हैं उनका की माता ज्वाला के अस्थाई शिविर में भी दशहरा उत्सव में 7 दिनों तक यहां पर विधिवत पूजा-अर्चना की जाती है उनका की माता ज्वाला लोगों की मन की मुरादे पूरी करती है जिन लोगों को संतान नहीं होती उनकी संतान होती है और जिन लोगों की शादी नहीं होती उनकी शादी की भी मुराद पूरी करती है। उन्होंने कहा कि देश भर के कई राज्यों से और हिमाचल प्रदेश से श्रद्धालु माता ज्वाला के मंदिर में माथा टेकने के लिए हर साल हजारों की संख्या में अस्थाई शिविर में पहुंचते हैं और ने कहा कि यह देव महाकुंभ विजिट शादी के लिए किया जाता है जहां पर सैकड़ों देवी-देवताओं का मिलन होता है और बुरी शक्तियों के प्रभाव को खत्म करने के लिए यह दिन मिलन होता है उनका की देव महाकुंभ में देवी देवताओं के दर्शन से श्रद्धालुओं को आशीर्वाद मिलता है उनका की देव धुनों से ब्रह्मांड की शक्तियों को इकट्ठे कर देव शक्तियों आसुरी शक्तियों का प्रभाव खत्म की जाती है उन्होंने कहा कि धीरे-धीरे सनातन धर्म में देवी-देवताओं के प्रति आस्था नई पीढ़ी कम दिखा रही है ऐसे में देवी-देवताओं के प्रति आस्था रहे इस दिशा में युवा पीढ़ी को प्रेरणा लेनी चाहिए बाईट-महेश्वर सिंह, भगवान रघुनाथ के प्रथम सेवक एवं छड़ी बरदारबाईट- दिनेश शर्मा, पुजारी भगवान रघुनाथ कुल्लूबाईट-जोगिंदर शर्मा, पुजारी माता ज्वाला बंजाररिपोर्ट तुलसी भारती संवाददाता कुल्लू
भगवान रघुनाथ की प्रतिदिन 6 आरती ,7 बार लगाया जाता है भोग-महेश्वर सिंह
कहा- 362 बर्षो से अयोध्या की पूजा पद्धति से हो रही भगवान रघुनाथ की पूजा अर्चना
भगवान रघुनाथ मंत्रोच्चारण के साथ पहनाएं जाते है आभूषण व वस्त्र हार श्रृंगार
भगवान रघुनाथ को विधि विधान से करवाया जाता है तुंग दातुन पंचामृत स्नान
देवी देवताओं की पंचोपचार के साथ की जाती है पूजा अर्चना
न्यूज मिशन
कुल्लू
अंतरराष्ट्रीय दशहरा देव महाकुंभ में भगवान रघुनाथ अयोध्या के प्राचीन पूजा पद्धति की तर्ज पर हर दिन छह बार आरती और 7 बार भोग लगाया जाता है। यही नहीं भगवान रघुनाथ को मंत्रोच्चारण के साथ दांतुन, शौच ,सनान वस्त्र व आभूषण हार श्रृंगार भी विधि विधान के साथ किया जाता है।जिससे हर दिन भगवान रघुनाथ की प्रातः पूजा मध्यान्ह पूजा साईं काल पूजा अर्चना की जाती है। भगवान रघुनाथ के साथ-साथ ,माता सीता, शालिग्राम, नरसिंह भगवान,व हनुमान का भी विधि विधान के साथ हार सिंगार किया जाता है। देवी देवताओं के अस्थाई शिविर में भी सुबह-शाम दो बार पूजा अर्चना की जाती है जिसमें पंचोपचार के साथ देवी देवताओं की देव वाद्य यंत्रों की धुनों पर पूजा अर्चना की जाती है
भगवान रघुनाथ के पुजारी दिनेश ने कहा कि भगवान रघुनाथ की मूर्ति अयोध्या से लाई है उन्होंने कहा कि वहीं से ही पूजा पद्धति की किताब लाई है। उन्होंने कहा कि भगवान रघुनाथ के मंदिर सुल्तानपुर में जिस प्रकार हर दिन प्रात पूजा मध्यान्ह पूजा चौथा पैर पूजा सायाकाल पूजा वॉच घड़ी जिसमें 6 आरतियां और 7 बार भोग लगाया जाता है उनका की बड़ी पूजा में भगवान रघुनाथ के प्रथम सेवक एवं छड़ी बरदार महेश्वर सिंह मंत्रोच्चारण के साथ हार सिंगार स्वयं करते हैं और साईं काल में भगवान रघुनाथ जी को कमलासन में बैठाया जाता है जहां पर चंद्रावली नृत्य का आयोजन किया जाता है। उन्होंने कहा की सुबह पूजा से पहले भगवान की जगाऊनी आरती की जाती है प्रातः पूजा संपन्न होने पर आरती होती है उसके बाद मध्यान पूजा के समय आरती की जाती है और 1:30 बजे के आसपास शैयन आरती की जाती है। उसके बाद 4:15 बजे चौथे पहर की आरती उसके बाद 8:30 बजे साईं काल की आरती और 9 बजे शेयन आरती होती है। उन्होंने कहा कि भगवान रघुनाथ की षोडशोपचार के साथ पूजा अर्चना की जाती है। उन्होंने कहा कि भगवान रघुनाथ को तुग की दातुन करवाई जाती है। उसके बाद पंचोपचार के साथ स्नान करवाया जाता है जिसमें शहद दूध दही जल के द्वारा स्नान किया जाता है। उसके बाद दस वर्ण पूजा होगी।षोडशोपचार की सभी विधियां से पूजा अर्चना होती है।
भगवान रघुनाथ के प्रथम सेवक एवं खड़ी ब्रदर महेश्वर सिंह ने कहा कि अयोध्या में 16 वी शताब्दी में भगवान रघुनाथ की पूजा अर्चना की विधि उस व्यक्ति को सी विधि से आज भी भगवान रघुनाथ की पूजा अर्चना की जाती है। उन्होंने कहा कि भूल के दामोदर गोसाई ने अयोध्या में 1 वर्ष रहकर वहां पर सभी प्रकार की विधियों को समझा और उसके बाद लिखित रूप से भी उस पूजा पद्धति को लाए थे उन्होंने कहा कि भगवान रघुनाथ की मूर्ति अयोध्या से चुरा कर लाए हैं और यहां पर लाने के बाद भगवान रघुनाथ 362 वर्षों पूरे विधि विधान के साथ पूजा अर्चना की जा रही है। उन्होंने कहा कि इस विधि के अनुसार भगवान को जगाने सोच कराने नहाने वस्त्र पहनने आभूषण पहनने के लिए मंत्रोच्चारण का प्रयोग किया जाता है उन्होंने कहा कि भगवान रघुनाथ जी को हर दिन अलग-अलग रंग के वस्त्र पहनाए जाते हैं इसमें सोमवार को सफेद और मंगलवार को लाल बुधवार को हरा वीरवार को पीला शुक्रवार को सफेद शनिवार को काले रंग का कपड़ा सजावट के साथ पहना जाता है उन्होंने कहा कि भगवान रघुनाथ के अस्त्र शस्त्र की पूजा अर्चना भी मंत्रोच्चारण के साथ की जाती है जिसमें हर अर्थशास्त्र को पूजा अर्चना की जाती है इसके अलावा भगवान रघुनाथ जी की पालकी सिंहासन की भी पूजा-अर्चना की जाती है उनका किए गौरव की बात है कि आज अयोध्या में यह पत्ती खत्म हो गई है लेकिन देव भूमि कुल्लू जिला में इस पद्धति को जीवित रखा है और भगवान रघुनाथ की देन है कि यहां पर अयोध्या किस पद्धति के साथ पूजा अर्चना की जाती है।
माता ज्वाला के पुजारी जोगिंदर शर्मा ने कहा कि अस्थाई शिविरों में देव बातें यंत्रों की धुनों पर पंचोपचार से पूजा-अर्चना सुबह शाम की जाती है और विकास की दशहरा उत्सव में आने वाले सभी देवताओं का स्थान बना हुआ जहां पर अस्थाई शिविर लगे हैं उनका की माता ज्वाला के अस्थाई शिविर में भी दशहरा उत्सव में 7 दिनों तक यहां पर विधिवत पूजा-अर्चना की जाती है उनका की माता ज्वाला लोगों की मन की मुरादे पूरी करती है जिन लोगों को संतान नहीं होती उनकी संतान होती है और जिन लोगों की शादी नहीं होती उनकी शादी की भी मुराद पूरी करती है। उन्होंने कहा कि देश भर के कई राज्यों से और हिमाचल प्रदेश से श्रद्धालु माता ज्वाला के मंदिर में माथा टेकने के लिए हर साल हजारों की संख्या में अस्थाई शिविर में पहुंचते हैं और ने कहा कि यह देव महाकुंभ विजिट शादी के लिए किया जाता है जहां पर सैकड़ों देवी-देवताओं का मिलन होता है और बुरी शक्तियों के प्रभाव को खत्म करने के लिए यह दिन मिलन होता है उनका की देव महाकुंभ में देवी देवताओं के दर्शन से श्रद्धालुओं को आशीर्वाद मिलता है उनका की देव धुनों से ब्रह्मांड की शक्तियों को इकट्ठे कर देव शक्तियों आसुरी शक्तियों का प्रभाव खत्म की जाती है उन्होंने कहा कि धीरे-धीरे सनातन धर्म में देवी-देवताओं के प्रति आस्था नई पीढ़ी कम दिखा रही है ऐसे में देवी-देवताओं के प्रति आस्था रहे इस दिशा में युवा पीढ़ी को प्रेरणा लेनी चाहिए