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कुल्लू, छोटाभंगाल तथा चौहर घाटी के पवित्र डैहनासर झील में 20 भादों 5 सितम्बर सोमबार को करें पवित्र स्नान

कुल्लू, छोटाभंगाल तथा चौहर घाटी के पवित्र डैहनासर झील में 20 भादों 5 सितम्बर सोमबार को करें पवित्र स्नान

कुल्लू

देवभूमि कुल्लू जिला में 5 सितम्बर को 20 भादों सोमवार को पद्धर उपमंडल के चल्यार, पुरानी हेचरी, उहल नदी तथा लंबाडग नदी के संगम स्थल बरोट, नागचला, हिमरी गंगा तथा चौहार घाटी तथा छोटाभंगाल के कई अन्य छोटे–छोटे पवित्र स्थलों पर होने वाले पवित्र महा स्नान के चलते समस्त लोगों खासकर युवाओं में काफी उत्साह दिखाई दे रहा है। जिला कुल्लू की लगघाटी व जिला कांगडा के छोटाभंगाल की चोटी पर लगभग 18 हज़ार फुट की ऊँचाई पर स्थित डैहनासर नामक पवित्र झील है। डैहनासर पवित्र झील तक पहुँचने के लिए बरोट, थरटूखोड तथा कुल्लू लगघाटी से होकर पैदल और सीधी चढ़ाई वाला रास्ता है। खाना, पानी व रात को ठहरने का सामान साथ ले जाएँ। जैसे-जैसे चढ़ाई चढ़ते जायेंगे बहुत ही खुबसूरत प्राकृतिक नज़ारे देखने को मिलेंगे तथा अनेक प्रकार की उगने वाली जड़ी बूटियों की सुगंध से एक नशा सा लगने लगता है जिसके लिए पानी, तरल पेय या फिर चूसने वाली टाफियां लेते रहें। प्रति वर्ष
भादों बीस प्रविष्टे को कांगड़ा, मंडी तथा कुल्लू जिले के हज़ारो कि संख्या में लोग इस पवित्र झील में पवित्र स्नान के लिए आते हैं। हज़ारों श्र्द्धालुओं सहित दूरदराज के पर्यटक भी इस दिन पवित्र स्नान के लिए आते हैं। दन्त कथायों में बुजूर्ग बताते हैं कि भगवान शिव व पार्वती मणिमहेश स्नान करने जा रहे थे तो झील को देख कर रात को प्रवास के लिए रुक गए। कहतें है कि झील में किसी डायन का निवास था। डायन ने शिव और पार्वती को युद्ध
के लिए ललकारा तो शिव ने डायन का संहार कर दिया तब से इस झील का नाम डैह्नासर पड़ गया। दूसरी दंतकथा में कहते हैं कि इस पवित्र झील पर सदियों पहले ऋषि पराशर ने घोर तपस्या के बाद शिव भगवान ने ऋषि पराशर दर्शन दिए। ऋषि पराशर ने भगवान शिव से इस पवित्र स्थल पर झील बनाने के लिए प्रार्थना की। भगवान शिव ने ऋषि पराशर की तुरंत मनोकामना पूरी कर दी। तब से इस पवित्र झील में प्रतिवर्ष भादों की बीस को पवित्र
स्नान करने का शुभ दिन निर्धारित हुआ। भादों माह की बीस प्रविष्टे को पवित्र स्नान के लिए प्रतिवर्ष हज़ारों श्रद्धालू डुबकियां लगाकर अपने आप को पवित्र करते हैं। श्रद्धालू पूजा अर्चना करके अपनी मन्नत मांग कर अगले वर्ष फिर मन्नत पूरी होने पर आने की प्रार्थना करते हैं। एक परंपरा के अनुसार इस पवित्र झील में डुबकी लगाने के बाद कुल्लू से आए श्रद्धालू और चौहर घाटी तथा छोटाभंगाल से आए श्रद्धालू आपस में धर्म भाई या धर्म बहन का
रिश्ता जोड़ने को पवित्र मानते हैं दूसरी बार स्नान करने पवित्र झील में आयें तो फिर से आपस में मिल सके। इस झील में एक अदभुत नजारा देखने को मिलता है। बरोट के बुधि सिंह व प्रधान पूर्ण चंद बताते हैं कि इस पवित्र झील को साफ रखने का जिम्मा भगवान शिव ने चिड़िया को दे रखा है। अगर  इस पवित्र झील के अंदर एक भी तिनका पड़ जाता है तो चिड़िया उस तिनके को तुरंत तिनका उठाकर दूर जाक बाहर फ़ेंक देती है। हर वर्ष पवित्र झील
में आने वाले श्रद्धालू खाने पिने के सामान के साथ ढेरों कचरा छोड़ जाते हैं जिससे हर वर्ष जमा होते कचरे की समस्या बढ़ती जा रही है। पवित्र झील को आजतक किसी ने स्वच्छ रखने की अपनी जिम्मेदारी नहीं समझी है जो सोचनीय विषय है। झील के आस पास कई प्रकार का कूड़ा कचरा पड़ा हुआ है
जिससे पवित्र झील की हालत दयनीय हो गई है। यहाँ आने वाले कुछ एक नास्तिक श्रद्धालुओं की वजह से यह पवित्र झील दूषित हो रही है। इन लोगों का कहना है कि लगभग पांच दसक वर्ष पूर्व यह पवित्र डेहनसर झील एक किलोमीटर लंबी, आधा किलो मीटर चौड़ी होती थी। झील बेहद गहरी होने के  साथ पवित्र शुद्ध जल से लबालब थी। मगर अब श्रद्धालुओं द्वारा की जाने वाली अपवित्रता की वजह से अपना अस्तित्त्व खोती जा रही है। बुधि सिंह व
प्रधान पूर्ण चंद ने सभी श्रद्धालुओं से आग्रह किया है कि इस पवित्र झील में स्नान करते समय साबून का प्रयोग नहीं करें। साथ में अन्य गंदगी व अन्य किसी भी प्रकार का कचरा पवित्र झील के अंदर या आस पास न डालें। सभी श्रद्धालु मिलकर इधर–उधर बिखरे कचरे को इकठा करके जला दें या जमीन पर दबा दें ताकि इस पवित्र झील की पवित्रता हमेशा कायम रहने के साथ-साथ इसका अस्तित्व भी बचा रहे।

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