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उपलब्धि- सूर्य की मदद से प्लास्टिक से बना डाली हाइड्रोजन गैस

जर्नल ऑफ एनवायर्नमेंटल केमिकल इंजीनियरिंग में प्रकाशित किया गया शोध

न्यूज़ मिशन

मंडी
प्लास्टिक को सूर्य की रोशनी से किया जाएगा डी-कम्पोज, बनाई जाएगी हाइड्रोजन

आईआईटी मंडी के प्रोफेसर डा. प्रेम फेक्सिल सिरिल और उनकी टीम ने हासिल की उपलब्धि

पूरी दुनियां में ग्लोबल वार्मिंग की गंभीर समस्या से जूझ रहा है ऐसे में जहां ग्लोबल वार्मिंग के लिए प्लास्टिक कूड़ा कचरा प्रबंधन करना चिंता का विषय बना है। लेकिन  प्लास्टिक अब हाइड्रोजन उत्पादन का जरिया बनेगा। हम उसी हाइड्रोजन गैस की बात कर रहे हैं जिसका फ्यूल भविष्य के लिए सबसे बेहतरीन माना गया है, क्योंकि इससे पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं पहुंचता। यह सब कर दिखाया है आईआईटी मंडी के शोधकर्ताओं ने। आईआईटी मंडी के स्कूल आफ बेसिक साइंसेज के प्रोफेसर डा. प्रेम फेक्सिल सिरिल के नेतृत्व वाली टीम ने यह नई खोज की है। उनकी टीम में डा. अदिति हालदार, रितुपर्णाे गोगोई, आस्था सिंह, वेदश्री मुतम, ललिता शर्मा और काजल शर्मा ने सहयोग दिया। खोजकर्ता प्रोफेसर डा. फेक्सिल सिरिल ने बताया कि उन्होंने प्लास्टिक को हाइड्रोजन और अन्य उपयोगी उत्पादों में बदलने में सक्षम फोटोकैटलिस्ट का विकास किया है। फोटोकैटलिस्ट से केवल प्लास्टिक का ट्रीटमेंट ही नहीं बल्कि खाद्य पदार्थों के कचरे और अन्य बायोमास को फोटोरिफॉर्म करना और पानी के प्रदूषकों को विघटित करना भी मुमकिन होगा। शोधकर्ताओं ने एक कैटलिस्ट विकसित किया है जो प्रकाश के संपर्क में प्लास्टिक को हाइड्रोजन और अन्य उपयोगी रसायनों में बदलने में सक्षम है। कैटलिस्ट कठिन या असंभव प्रतिक्रियाओं को अंजाम देने वाले पदार्थ हैं और प्रकाश से सक्रिय होने पर उन्हें फोटोकैटलिस्ट कहा जाता है

शोध में यह बात भी सामने आई है कि अधिकतर प्लास्टिक पेट्रोलियम से प्राप्त होता है परंतु ये बायो-डिग्रेडेबल नहीं हैं। इसका मतलब यह हुआ कि इसे आसानी से नष्ट नहीं किया जा सकता। न तो ये गलता है और न ही सड़ता है। अगर आप इसे जलाएंगे तो इससे निकलने वाला धुआं पर्यावरण को नुकसान पहुंचाता है। कहा जाता है कि अब तक बने 4.9 बिलियन टन प्लास्टिक का अधिकांश आखिर में लैंडफिल पहंुचेगा जिससे मनुष्य के स्वास्थ्य और पर्यावरण को बड़ा खतरा है। बेकाबू हो रहे प्लास्टिक प्रदूषण रोकने के प्रति उत्साहित आईआईटी मंडी के शोधकर्ता प्लास्टिक को उपयोगी रसायनों में बदलने की विशेष विधियां विकसित कर रहे है।

गौर रहे कि इस शोध का सारा खर्च शिक्षा मंत्रालय की शिक्षा एवं शोध संवर्धन योजना (स्पार्क) के तहत किया गया था। शोध के निष्कर्ष हाल में जर्नल ऑफ एनवायर्नमेंटल केमिकल इंजीनियरिंग में प्रकाशित किए गए हैं।

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