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कुल्लू भगवान रघुनाथ की नगरी सुल्तानपुर में रात साढ़े  ग्यारह बजे हुआ होलीका का दहन

भगवान रघुनाथ लाव लश्कर के साथ निकले मंदिर से बाहर

रघुनाथ भगवान की अगुवाई में हुआ होलीका दहन
मुख्य छड़ीबरदार महेश्वर सिंह व सेवकों ने निभाई प्राचीन परंपरा
न्यूज मिशन
कुल्लू
देवभूमि कुल्लू जिला में भगवान रघुनाथ की नगरी सुल्तानपुर में बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक होलिका दहन बीती रात साढ़े ग्यारह बजे विधिवत पूजा अर्चान के साथ संप्पन हुआ । होलिका दहन के साथ कुल्लू जिला में होली त्यौहार संप्पन हुआ। धार्मिक नगरी रघुनाथपुर में होलीका का दहन की प्राचीन परंपरा  विधिवत निर्वहन किया गया । भगवान रघुनाथ अपने मंदिर से  लाव लश्कर के साथ रूपी पलैस मैदान में पुहंचे जहां पर मुख्य छड़ीबरदार महेश्वर सिंह और रघुनाथ के सेवकों ने फाग की विधिपूर्वक पूजा अर्चना की गई ।होलीका के चारों ओर परिक्रमा 4 बार परिक्रमा करने के उपरांत झाड़ियों को होलीका के प्रतीक रूप में जलाया गया। इस दौरान भगवान नरसिंह की भी पूजा अर्चना की गई। भगवान रघुनाथ के छड़ीबरदार महेश्वर सिंह ने विधिवत पूजा अर्चना कर प्राचीन परंपरा का निर्वहन किया और महंत समुदाय के लोगों ने पारंपरिक होली गीत भी गाए। होलीका दहन के उपरांत यहां सैंकड़ों की संख्या में पहुंचे श्रद्धालु लकड़ी और राख को अपने घरों में ले गए। मान्यता है कि लकड़ी व राख को घर में ले जाने से बुरी शक्तियों का नाश हो जाता है। और घर में सुख समृद्वि रहती है।
वीओ-भगवान रघुनाथ मुख्य छड़ीबरदार महेश्वर सिंह ने कहा कि होलिका दहन का महुर्त देखा जाता है और पूर्णिमा के दिन होती है और भगत प्रलाद बिष्णु भगवान के भगत थे और उनकों अनको यातनाए दी गई और अंतिम यातना में होलिका को बरदान दिया गया था और की वो होलिका अग्नि में जलेगी नहीं भगवान रघुनाथ की नगरी सुल्तानपुर में होलिका दहन की प्राचीन परंपरा का निर्वहन देखें की बहन होलिका ने प्रलाद को गोद में बैठा कर जब आग में बैठी तो होलिका चादर के साथ आग मे जल गई और भगत प्रलाद बच गए जिसके उपलक्ष में हर साल होलिका दहन की परंपरा निभाई जाती है और भगवान रघुनाथ अपने मंदिर से लाव लश्वर के साथ मैदान में पहुचते है जहां पर झांडिया से 2 होलिका विधिवत पूर्जा अर्चना कर 4 चक्कर लगाकर जलाई जाती है।जिसके बाद होली का त्यौहार संपन्न होता है।
राजपुरोहित कुल्लू प्रवीण कुमार शर्मा ने  कहां की जिस प्रकार भक्त प्रहलाद  हरि का सिमरन करते रहते थेपरंतु उनके पिता हिरण्याक्ष वह हरि का सिमरन करने के लिए मना करते थे और अपनी पूजा करने के लिए कहते थे और भगवान राम और विष्णु की पूजा अर्चना करने के लिए यात्राएं देते थे उन्होंने कहा कि हिरण्याक्ष  की बहन होलिका को यह वरदान था कि वह किसी भी अग्नि में नहीं चलेगी इसलिए जब भक्त प्रहलाद को होली का ने अपनी गोद में रखा और उसके बाद होलिका जल गई और भक्त प्रहलाद बच गए इसलिए होली के बाद होलिका दहन  परपंरा जीवित है और  यहां पर 2 स्थानों पर होलीका दहन होता है एक रघुनाथ  की होलीका दहन और दूसरी होलीका भगवान नरसिंह जी होलीका दहन होती है। और उसके बाद यहां पर जो आग जलती है उसकी आग की चिगांरी घर ले जाने से शुभ होती और उस घर पर वरकत रहती है।
स्थानीय निवासी हितेश मोदगिल कहाकि होलिका दहन उत्सव कई सदियों  से निभाई जा रही है।उन्होंन कहाकि देवभूमि कुल्लू में युवाओं को इस तरह की परंपराओं को हमेशा आगे बढ़ाने के लिए सहयोग देना चाहिए।उन्होंने कहाकि बुराई पर अच्छाई की जीत प्रतीक होलिका दहन की आग और राख लोग अपने घरों को ले जाते मान्यता है कि होलिका दहन की आग और राख से सुख समृद्वि बनी रहे। होलिका दहन की जलती आग की लकड़ी लेकर अपने घरों को ले जाते है और इससे घरों में बुरी शाक्तियों से बचाव होता है और घर में सुख समृद्वि रहती है।

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