हिमालय नीति अभियान और सहारा संस्था के अथक प्रयास लाए रंग, कानून को लागू करवाने में निभा रहे अपनी एहम भूमिक
न्यूज़ मिशन
परस राम भारती बंजार
भारत की संसद द्वारा वर्ष 2006 में वन अधिकार अधिनियम बनाया गया था। हिमाचल प्रदेश में अब करीब 16 वर्षों के बाद इस कानून के लागू होने की उम्मीद जगी है। वन अधिकार अधिनियम के लागू होने से अब लोगों को इस कानून के तहत मिलने वाले सभी लाभ मिलेंगे। खण्ड बंजार की वन अधिकार समितियों ने वर्ष 2014 से लेकर 2021 तक कुल 73 सामुदायक दावा फाइलों को उपमंडल स्तरीय समिति के कार्यालय में समय समय पर प्रेषित किया है। परंतु इतने लंबे इंतजार तक यह फाइलें उपमंडल स्तरीय समिति में ही पड़ी रही और उप मंडल स्तर समिति द्वारा कभी इन पर चर्चा भी नही की गई। गत सात वर्षों में दो बार इनमें आपत्तियां भी लगाई गई और वन अधिकार समितियों ने समय समय पर इन आपत्तियों को दूर किया था। वन अधिकार अधिनियम 2006 की धारा 3(1) के अनुसार यह सारी प्रक्रिया मात्र 90 दिनों में ही पूरी हो जानी चाहिए थी। लेकिन इतने लम्बे इंतजार के बाद अब इस कानून के धरातल स्तर पर लागू होने की उम्मीद जगी है।
गत वर्ष जुलाई माह में भी इन फाइलों पर आपत्ति लगाई गई थी और फाइलों को खण्ड विकास अधिकारी बंजार के माध्यम से वन अधिकार समितियों को बापिस भेज दिया गया था। इन आपत्तियों को दुरुस्त करने के लिए समस्त वन अधिकार समितियों को सहारा संस्था और हिमालय नीति अभियान द्वारा प्रशिक्षण दिया गया।
सहारा संस्था के निर्देशक एवं हिमालय नीति अभियान के सदस्य राजेन्द्र चौहान, राज्य सचिव संदीप मिन्हास, हिमालय नीति अभियान के राष्ट्रीय संयोजक गुमान सिंह, सहारा के बोर्ड सदस्य एवं सदस्य हरि सिंह और स्वर्ण सिंह ने वर्ष 2014 से ही वन अधिकार अधिनियम 2006 को लागू करने की प्रक्रिया के तहत विभिन्न क्षेत्रों की वन अधिकार समितियों को प्रशिक्षण दिया और दावों को कानून के अनुसार जिला स्तर की समिति में ले जाने की प्रक्रिया में शामिल रहे और सभी सदस्यों के अथक प्रयासों से ही दावे पास किये गए हैं।
इस समय तक FRC की 26 दावा फाइलों को जिला स्तरीय समिति में प्रेषित किया गया है जिसमे खण्ड बंजार की बशीर, नागनी, कंढीधार, चनालडी, दाड़ी, जमाला, शरची 1, शरची 2, बांदल, झुटली, डिंगचा, झनीया, रोपा, तिंदर, शिकावरी,पटौला, शाहिला, पेखड़ी, शलिंगा, दारन, ननोट, रम्बी, कलवारी, मनहार आदि वन अधिकार समितियां शामिल हैं ।
सहारा संस्था के निर्देशक राजेन्द्र चौहान ने जानकारी देते हुए बताया कि वन अधिकार अधिनियम 2006 एक ऐसा लोकहित कानून है जिसके माध्यम से लोगों को उनके अधिकार मिलते हैं इसलिए सरकार को प्राथमिकता के आधार पर वन अधिकार कानून को लागू करने पर ध्यान देना चाहिए ।
हिमालय नीति अभियान के सदस्यों ने केंद्र और प्रदेश सरकार से वन अधिकार अधिनियम को धरातल पर लागू करने और इसकी प्रक्रिया को जारी रखने मे अपनी अहम भूमिका निभाई जो आज सफल होती हुई नजर आ रही हैं ।
आज प्रदेश में हिमालय नीति अभियान के सहयोग से चम्बा, हमीरपुर, मंडी, कुल्लू, किन्नौर और लाहुल स्पीति में वन अधिकार अधिनियम को क्रियावन्दित की प्रक्रिया चल रही है। उधर चम्बा के चवाड़ी में उपमंडल स्तरीय समिति ने 51 दावा फाइलों को जिला स्तरीय समिति चम्बा को मंजूरी हेतु भेज दिया है ।
इस समय सरकार प्रदेश के अंदर वन अधिकार अधिनियम 2006 कानून की धारा 3(2) के तहत तो कार्य कर रहें हैं परंतु 3(1) को क्रियान्वन करने में ध्यान नही दिया जा रहा है ।
बता दें आज भी कुल्लू में सन 1884 में व्रिटिश अधिकारी एंडरसन द्वारा बनाए गए कानून की मार को यहां के लोग झेल रहे हैं और जन सुनवाई का भी कोई महत्व नही है।
17 अक्टूबर 2014 को तत्कालीन उपायुक्त कुल्लू राकेश कंवर द्वारा की गई जन सुनवाई जो सैंज के निहारनी में विश्व धरोहर बनाने लिए की गई थी
जिसमे उपायुक्त ने निर्णय लिया था कि सहारा संस्था और हिमालय नीति अभियान वन अधिकार 2006 को लागू करने की प्रक्रिया में जनता का सहयोग कर रहे हैं यदि लोगों को अपने अधिकारों को संरक्षित करना है तो वन अधिकार अधिनियम 2006 की प्रक्रिया को पूरा करना होगा। लेकिन ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क द्वारा अभी तक कोई भी कार्यवाही नही की और फाइलें अभी तक बंद पड़ी हैं।