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कुल्लू में भगवान रघुनाथ की नगरी सुल्तानपुर में हुआ विधिवत रूप से होलीका का दहन
मुख्य छड़ीबरदार महेश्वर सिंह व सेवकों ने निभाई प्राचीन परंपरा
भगवान रघुनाथ लाव लश्कर के साथ निकले मंदिर से बाहर
रघुनाथ भगवान की अगुवाई में हुआ होलीका दहन
न्यूज मिशन
कुल्लू
कुल्लू जिला की धार्मिक नगरी रघुनाथपुर और हरिपुर में होलीका का दहन की प्राचीन परंपरा विधिवत निर्वहन किया गया । भगवान रघुनाथ अपने मंदिर से लाव लश्कर के साथ रूपी पलैस मैदान में पुहंचे जहां पर मुख्य छड़ीबरदार महेश्वर सिंह और रघुनाथ के सेवकों ने फाग की विधिपूर्वक पूजा अर्चना की गई और फिर उसके बाद राजा रूपी पैलेस के बाहर मैदान में दो स्थानों पर सजायी गई होलीका के चारों ओर परिक्रमा करने के उपरांत झाड़ियों को होलीका के प्रतीक रूप में जलाया गया। इस दौरान भगवान नरसिंह की भी पूजा अर्चना की गई। भगवान रघुनाथ के छड़ीबरदार महेश्वर सिंह ने विधिवत पूजा अर्चना कर प्राचीन परंपरा का निर्वहन किया और महंत समुदाय के लोगों ने पारंपरिक होली गीत भी गाए। होलीका दहन के उपरांत यहां सैंकड़ों की संख्या में पहुंचे श्रद्धालु लकड़ी और राख को अपने घरों में ले गए। मान्यता है कि लकड़ी व राख को घर में ले जाने से बुरी शक्तियों का नाश हो जाता है। और घर में सुख समृद्वि रहती है। होलिका चादर के साथ आग मे जल गई और भगत प्रलाद बच गया।स्थानीय सुल्तानपुर निवासी सतीश कात्ययान ने बताया कि बुराई पर अच्छाई की जीत होलीका दहन भगवान रघुनाथ से जुड़ा हुआ त्यौहार है।उन्होंने कहाक देवभूमि में यह परपंरा जीवित है और पिछले कई यालों से इस होलीका दहन में भाग लेते है।उन्होंने कहाकि यहां पर दो स्थानों पर होलीका दहन होता है एक रघुनाथ की होलीका दहन और दूसरी होलीका भगवान नरसिंह जी होलीका दहन होती है।उन्होंने कहा कि इस होलीका दहन में झाड़ियों के बीच में एक ध्वजा होती है उस ध्वजा पहले हाथ लगाने से भगवान उनकी मनोकामना पुरी होती है।उन्होंने कहा कि होलीका दहन में भगवान रघुनाथ और नरसिंह भागवान दोनो क होलीका का दहन किया जाता है और उसके बाद यहां पर जो आग जलती है उसकी आग की चिगांरी घर ले जाने से शुभ होती और उस घर पर वरकत रहती है।
वीओ भगवान रघुनाथ मुख्य छड़ीबरदार महेश्वर सिंह ने कहा कि होलिका दहन का महुर्त देखा जाता है और पूर्णिमा के दिन होती है और भगत प्रलाद बिष्णु भगवान के भगत थे और उनकों अनको यातनाए दी गई और अंतिम यातना में होलिका को बरदान दिया गया था और की वो होलिका अग्नि में जलेगी नहीं हिरणाक्ष की बहन होलिका ने प्रलाद को गोद में बैठा कर जब आग में बैठी तो होलिका चादर के साथ आग मे जल गई और भगत प्रलाद बच गए जिसके उपलक्ष में हर साल होलिका दहन की परंपरा निभाई जाती है और भगवान रघुनाथ अपने मंदिर से लाव लश्वर के साथ मैदान में पहुचते है जहां पर झांडिया से दो होलिका विधिवत पूर्जा अर्चना कर 4 चक्कर लगाकर जलाई जाती है।जिसके बाद होली का त्यौहार संपन्न होता है।
वीओ भगवान रघुनाथ मुख्य छड़ीबरदार महेश्वर सिंह ने कहा कि होलिका दहन का महुर्त देखा जाता है और पूर्णिमा के दिन होती है और भगत प्रलाद बिष्णु भगवान के भगत थे और उनकों अनको यातनाए दी गई और अंतिम यातना में होलिका को बरदान दिया गया था और की वो होलिका अग्नि में जलेगी नहीं हिरणाक्ष की बहन होलिका ने प्रलाद को गोद में बैठा कर जब आग में बैठी तो होलिका चादर के साथ आग मे जल गई और भगत प्रलाद बच गए जिसके उपलक्ष में हर साल होलिका दहन की परंपरा निभाई जाती है और भगवान रघुनाथ अपने मंदिर से लाव लश्वर के साथ मैदान में पहुचते है जहां पर झांडिया से दो होलिका विधिवत पूर्जा अर्चना कर 4 चक्कर लगाकर जलाई जाती है।जिसके बाद होली का त्यौहार संपन्न होता है।
स्थानीय बैरागी समुदाय के सदस्य खेम दास महंत ने कहा कि कुल्लू जिला में बसंत उत्सव से ही होली उत्सव शुरू होता है लेकिन भगवान रघुनाथ के मंदिर में होलाष्टक में 8 दिन तक हर रोज शाम के समय पूजा के समय होली गायन की परंपरा का निर्वहन करते हैं। पुरी ने कहा कि रघुनाथपुर में दो होलिका दहन कार्यक्रम हुआ है जिसमें बीच में दो ध्वजा होती है उसको भी बैरागी समुदाय के लोग पकड़ते हैं और उसके बाद रामशिला हनुमान मंदिर में लगाते हैं। उन्होंने कहा कि होलिका दहन के दूसरे दिन फूल डोल के कार्यक्रम में भगवान रघुनाथ जी मंदिर से बाहर निकलकर सभी बैरागी समुदाय के लोगों को दर्शन देते हैं। उन्होंने कहा कि पुरातन समय से ही होलिका दहन की आग अपने घर जल जाते हैं ऐसी मान्यता है कि उससे घर में सुख समृद्धि रहती है और नरात्मकता खत्म होती है।