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साढ़े 3 सौ सालों से महंत समुुदाय के लोग निभा रहे भगवान रघुनाथ के प्राचीन होली के त्यौहार की की परंपरा- महेश्वर सिंह

कहा-भगवान रघुनाथ के मंदिर में होलाष्टक में 8 दिन हर रोज गाते है होली गीत

बैरागी समुदाय के गुरू फुआरी महाराज के स्थान झिड़ी नगर के ठावा में व्रज की होली गीत का होता है  गायन

न्यूज मिशन

कुल्लू
कुल्लू जिला में बैरागी समुदाय के लोग व्रज की होली मनाते है। उनकी यह होली ब्रज में मनाई जाने वाली होली की तर्ज पर होती है। ब्रज की भाषा में होली के गीत वृंदावन के बाद कुल्लू घाटी में गूंजते हैं। परंपरागत गीतों को गाते हुए यह समुदाय 40 दिनों तक इस होली उत्सव को मनाते हैं। कुल्लू में मनाए जाने वाली यह अनोखी होली बसंत पंचमी से शुरू होती है। उसी दिन से इस समुदाय के लोग एक दूसरे के घरों व मंदिरों में जाकर होली मनाते हुए गुलाल उड़ाते हैं और होली के गीत गाते हैं। वैरागी समुदाय के लोग रघुनाथ को हर दिन गुलाल लगाते हैं। इस समुदाय द्वारा मनाए जाने वाले इस होली का संबध नगर के झीड़ीं और राधा कृष्ण मंदिर नगर ठाव बिहारी बाबा रहते थे और उन्हीं की याद में समुदाय के लोग टोली बनाकर जिले में जाकर भी होली के गीत गाते हैं यह लोग हर साल उनके तपोस्थली में होली से 1 दिन पहले जाते हैं और पूरा दिन होली गीत गाकर आशीर्वाद लेते हैं ।

भगवान रघुनाथ् के मुख्य छड़ी बरदार महेश्वर सिंह ने कहाकि राजा जगत सिंह के समय में महात्म पेयहारी कुल्लू नगर पधारे तब से लेकर देवभूमि में बैष्णव धर्म की स्थापना हुई।उन्होने कहाकि भगवान रघुनाथ के आगमन के साथ वृंदावन से वैरागी समुदाय के लोगों को बिशेष रूप से यहां लाए यहां पर आखाड़ा बााजार में ठहराया था।उन्होंने कहाकि बीते कुछ सालों पहले यह परंपरा कम हो गई थी। 10्र और 12 वैरागी आते थे और यहां पर व्रज भाषा में होली गीत गाकर इस परंपरा का निर्वहन करते थे लेकिन अब वैरागियों की संख्या में बढ़ौतरी हुई है और यहां पर इस परंपरा को अच्छे से निभा रहे है।

 

वीओ- स्थानीय निवासी हुकम राम महंत ने बताया कि 1650 का समृद्ध इतिहास है जब रघुनाथ जी की इस देवभूमि ने पधारे तब से यहां एक पर्व होली पर्व यहां पर मनाए जाने लगे। उन्होंने कहा कि इसके पीछे आदि वैष्णव संत बिहारी जी का नाम आता है। जिनके सुझाव से अयोध्या से यह मूर्ति आई थी और होली का पर्व बसंत पंचमी से शुरू होता है, उन्होंने बताया कि होली की परंपरा बसंत पंचमी से प्रारंभ होती है बसंत पंचमी के बाद इसका मुख्य आकर्षण रहता है। होलाष्टक जो कि 10 मार्च से शुरू है आज तीसरा होलाष्टक है आज बैरागी समुदाय के लोग ऐतिहासिक राधा कृष्ण नग्गर के ठावा के मंदिर था व्रज के गीत गायन कर रहे हैं। जो कि बस उसी परंपरा निभा रहे हैं। कुल्लू जनपद में नगर निगम हरिपुर में यह परंपरा वर्षो से चली आ रही है जिस प्रकार से अयोध्या में होली मनाई जाती है उसी की तर्ज पर यहां पर यह होली उत्सव का आयोजन किया जाता है।एकादशी महंत ने बताया कि बसंत पंचमी के बाद होली का आयोजन 40 दिनों तक मनाया जाता है रघुनाथ के मंदिर से होली का आगाज शुरू होता है हर घर तक लोग अपने कीर्तन भजन करते हैं खासकर बैरागी समुदाय में इस त्यौहार को मनाया जाता है। उन्होंने कहा कि मंच समुदाय के लोग बैरागी समुदाय के लोग मथुरा से आए हुए हैं ज्यादातर गीत मथुरा अब्द, ब्रज की भाषा में गीत गाए जाते है।

 

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