कुल्लूबड़ी खबरहिमाचल प्रदेश

रेशम उद्योग को प्रोत्साहित करने की प्रदेश में अपार संभावना-आशुतोष गर्ग

केन्द्रीय सिल्क बोर्ड के तत्वावधान में कुल्लू में रेशम उत्पादन पर कार्यशाला आयोजित

कुल्लू 09 मार्च।

हिमाचल प्रदेश की भौगोलिक स्थितियां रेशम उद्योग को प्रोत्साहित करने के लिये काफी अनुकूल है। यह बात उपायुक्त आशुतोष गर्ग ने आज देव सदन में राष्ट्रीय सिल्क बोर्ड बैंगलोर तथा रेशम तकनीकी सेवा केन्द्र जम्मू द्वारा राज्य सिल्क बोर्ड व हस्तशिल्प के सहयोग से रेशम को बढ़ावा देने के संबंध में आयोजित एक दिवसीय कार्यशाला में बतौर मुख्य अतिथि कही। कार्यशाला में जिला के अग्रणी बुनकरों ने भाग लिया।
आशुतोष गर्ग ने कहा कि हिमाचल प्रदेश में लगभग 32 मीट्रिक टन यानि देश का केवल एक प्रतिशत रेशम उत्पादन होता है। यह एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें आजीविका के लिये अपार संभावना है। उन्होंने कहा कि सिल्क बोर्ड द्वारा हितधारकों व बुनकरों के लिये महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान की गई। उन्होंने कहा कुल्लू की शॉल व ऊनी वस्त्र देश-दुनिया में मशहूर है और यदि रेशम को इस उद्योग में शामिल करने के प्रयास किये जाते हैं तो संभवतः इसमें गुणात्मक वृद्धि होगी और हजारों लोगों को रोजगार के साधन उपलब्ध होंगे। उन्होंने कहा कि प्रोद्योगिकी के माध्यम से रेशम को अपग्रेड किया जा सकता है। इससे स्थानीय बुनकरों के लिये एक नवोन्मेष मिलेगा। रेशम को यहां की शॉल व अन्य ऊनी वस्त्रों में मिश्रण करके एक मजबूत और बेहतर क्वालिटी का उत्पाद निखर कर आएगा। उत्पादकों को इसका मूल्य भी काफी अच्छा मिलेगा और बाजार में मांग भी बढ़ेगी। इसके लिये रेशम बोर्ड से बड़े बुनकरों को तकनीकी जानकारी हासिल करने की जरूरत है।
उन्होंने कहा कि भारत सरकार की रेशम उत्पादन को बढ़ावा देने की अनेक योजनाएं हैं। रेशम रिफाइनिंग का संयंत्र स्थापित करने के लिये 50 से 80 प्रतिशत की राशि केन्द्र सरकार वहन करेगी। दस फीसदी राज्य सरकार और केवल दस प्रतिशत की लाभार्थी को वहन करना होगा।
इससे पूर्व, उपायुक्त ने केन्द्रीय रेशम बोर्ड तथा स्थानीय बुनकरों द्वारा रेशम उत्पादों पर लगाई गई प्रदर्शनियों का अवलोकन किया।
रेशम की संभावना को देखते हुए विश्व लीडर बन सकता है भारत
रेशम पर प्रस्तुति देते हुए केन्द्रीय सिल्क बोर्ड बैंगलोर के निदेशक डॉ. सुभाष वी. नायक ने कहा कि हमारे देश की जलवायु रेशम उत्पादन के लिये अनुकूल है और इसकी संभावना को देखते हुए भारत विश्व लीडर बनकर उभर सकता है। हिमाचल प्रदेश की भौगोलिक परिस्थितियां रेशम उत्पादन के लिये काफी अच्छी है और आने वाले समय में प्रदेश में रेशम की पैदावार को कई गुणा तक बढ़ाया जाएगा। उन्होंने कहा यहां के अग्रणी बुनकरों को आवश्यक तकनीकी जानकारी प्रदान करके उन्हें सरकारी योजनाओं में अनुदान के तहत मशीनरी उपलब्ध करवाकर रेशम को प्रोत्साहित किया जाएगा। उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र में स्वरोजगार की अपार संभावना है। रेशम का मूल्य एडिशन तेजी के साथ होता है और छोटा सा उद्यमी भी अच्छी-खासी कमाई कर सकता है।
नायक ने कहा कि पहले अच्छे उपकरण व मशीनरी न होने के कारण रेशम की रिफाईनिंग की गुणवत्ता अच्छी नहीं थी, लेकिन आज स्थितियां अलग है और तकनीकी में बड़ा बदलाव आया है। देश में अच्छी क्वालिटी की सिल्क का उत्पादन किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि सिल्क को एक्सपोर्ट करने पर विचार किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि संभावना वाले प्रदेशों में मास्टर बुनकरों को तैयार करेंगे। उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश रेशम उत्पादन में विशेष राज्य की श्रेणी में आ सकता है। ऐसा होने पर 80 प्रतिशत अनुदान केन्द्र सरकार प्रदान करेगी। उन्होंने कहा कि सिल्क को ऊन के साथ मिलाकर शॉल, पट्टू, वस्त्र और यहां तक कि कुल्लवी टोपी नये स्वरूप में तैयार की जा सकती है जो देखने में और अधिक संुदर होने के साथ मजबूत भी होगी।
उन्होंने कहा कि सिल्क को कपड़े से अलग हटकर भी देखा जा रहा है। इसमें माकूल प्रोटीन होती है। इसका उपयोग पोषक तत्व तथा दवाईयों के लिये भी किया जा सकता है। इससे उद्योग में वैल्यू एडिशन हो जाएगा।
विशेष अतिथि के रूप में उपस्थित जिला परिषद अध्यक्ष पंकज परमार ने कहा कि जिला में रेशम उत्पादन प्रारम्भिक अवस्था में है। इसे बढाने के लिये केन्द्रीय बोर्ड के साथ मिलकर स्थानीय बुनकरों को प्रयास करने होंगे। उन्होंने कहा कि सिल्क समग्र योजना के तहत आम आदमी को रोजगार का साधन है। यहां जमीनी स्तर पर काम करने की जरूरत पर उन्होंने बल दिया। उन्होंने कहा कि कुल्लू की जिला परिषद रेशम का प्रचार व प्रसार करने का कार्य करेगी।
रेशम तकनीकी सेवा केन्द्र जम्मू के वैज्ञानिक एन.एस. गहलोत ने कहा कि उनका संस्थान कच्चे रेशम, कोकून, यार्न केे लिये परीक्षण सेवाएं प्रदान करता है। संस्थान हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर, पंजाब तथा हरियाणा के रेशम कोसा, धाग/कपड़ा उद्योग के लिये तकनीकी सेवाओं का आयोजन कर रहा है। संस्थान का मुख्य उद्देश्य रेशम की रीलिंग, कताई, बुनाई और रंगाई प्रसंस्करण से संबंधत प्रौद्योगिकियों का प्रदर्शन करना, रेशम कोकून और अन्य वस्त्र सामग्रह के लिये परीक्षण सेवाएं, आधुनिक तकनीकों के माध्यम से रेशम उत्पादों की मात्रा और गुणवत्ता में सुधार करना तथा रेशम को प्रोत्साहित करने के लिये भारत सरकार की योजनाओं का कार्यान्वयन करना है।
कार्यशाला में जिला उद्योग केन्द्र की महाप्रबंधक छिमे अंगमो, रेशम निदेशालय हि.प्र. के उप निदेशक बलदेव चौहान, उपनिदेशक बुनकर सेवा केन्द्र कुल्लू अनिल साहू, सहायक प्रबंधक एनएचडीसी शिवाजी शिंदे, कृष्णा वूल उद्योग मण्डी के ओ.पी. मल्होत्रा, बोद्ध शॉल कुल्लू के बोद्ध पलजोर, महाप्रबंधक भूट्टिको रमेश ठाकुर ने जिला में रेशम की संभावना तथा इसके उत्पादन को बढ़ाने के संबंध में अपने विचार रखें।
.0.

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Content is protected !!
Trending Now