कुल्लूधर्म संस्कृतिहिमाचल प्रदेश
कमांद में 30फुट मशालों से जलाई जाग, अश्लील जुमलों से भगाई बूरी शक्तियां
देवता ने गांव में शराव पर लगाया प्रतिबंध, लोगों ने की सराहना,
जाग के चारों ओर देवते ने किया नृत्य
न्यूज मिशन
कुल्लू
महाराजा कोठी के कमांद गांव में देवता नारायण और देवता पराशर का पारंपरिक देव मेला धूमधाम से संपन्न हुआ। मेले में शुक्रवार सुबह देवता के प्रांगण मे 30फुट की मशालोंं से जाग जलाई गई। जाग में आग जलाने के पश्चात इसके चारों ओर देवता की गुर द्वारा देव खेल का कार्यक्रम चलता है। देवता नारायण को सिर पर और पराशर देवता का रथ कंधे पर उठाया जाता है। देवता पराशर और देवता नारायण के लोग बीड़ी, तंबाकू व शराब का इस्तेमाल नहीं करते हैं, इन गांवों के घरों में तंबाकू ले जाने वालों को दंड के रूप में देना पड़ता है लोग देवता के डर से बीड़ी तंबाकू छूते तक नहीं है। पांच वर्ष पूर्व देवताओं ने मेले में शराब पर पाबंदी लगाई थी जो अब तक सफलतापूर्वक चल रही है।
देवता के हरयान सुख राम ने बताया कि सिंधार नामक का राक्षस था। जिसको देवता पराशर ने उसे पराजित किया था। उस के उपलक्ष पर इस मेले का आयोजन किया जाता है। उन्होंने कहा कि राक्षसी शक्तियों को हीन करने के लिए इस मेले का आयोजन किया जाता रहा ह जो कि सदियों से चली आ रही है। उन्होंने कहा कि इस मेले में खड़ीहार वाराहार मोहल क्षेत्र के लोग मेले में शिरकत करते हैं। उन्होंने कहा कि इस दौरान मुथल, करेरी,खलोगी कमांद लोग रात को 1बजे के करीब आग में मशाल जलाकर अश्लील जुमलो गा कर कमांद में पहुंचते हैं।अश्लील जुमलों से असूर शक्ति क्षीण हो जाती है, उन्होंने कहा कि यह मेला देवता नारायण और पराशर के समान में मनाया जाता है। उन्होंने कहा कि सुबह 4 बजे के करीब देवते के प्रागण में जाग को जलाया जाता है। उन्होंने कहा कि कमांद गांव के लोग लकड़ियां इकट्ठा करते हैं और उसे खड़ा किया जाता है जो कि 25 से 30फुट के करीव होती है। और मशालों साथ देवता नारायण का गुर उसको जलाता है और इस दौरान देवता के गुर देव खेल करते हैं और दोनों देवता के रथ जाग के चारों ओर हुलकी करते हैं।
कुल्लू
महाराजा कोठी के कमांद गांव में देवता नारायण और देवता पराशर का पारंपरिक देव मेला धूमधाम से संपन्न हुआ। मेले में शुक्रवार सुबह देवता के प्रांगण मे 30फुट की मशालोंं से जाग जलाई गई। जाग में आग जलाने के पश्चात इसके चारों ओर देवता की गुर द्वारा देव खेल का कार्यक्रम चलता है। देवता नारायण को सिर पर और पराशर देवता का रथ कंधे पर उठाया जाता है। देवता पराशर और देवता नारायण के लोग बीड़ी, तंबाकू व शराब का इस्तेमाल नहीं करते हैं, इन गांवों के घरों में तंबाकू ले जाने वालों को दंड के रूप में देना पड़ता है लोग देवता के डर से बीड़ी तंबाकू छूते तक नहीं है। पांच वर्ष पूर्व देवताओं ने मेले में शराब पर पाबंदी लगाई थी जो अब तक सफलतापूर्वक चल रही है।
देवता के हरयान सुख राम ने बताया कि सिंधार नामक का राक्षस था। जिसको देवता पराशर ने उसे पराजित किया था। उस के उपलक्ष पर इस मेले का आयोजन किया जाता है। उन्होंने कहा कि राक्षसी शक्तियों को हीन करने के लिए इस मेले का आयोजन किया जाता रहा ह जो कि सदियों से चली आ रही है। उन्होंने कहा कि इस मेले में खड़ीहार वाराहार मोहल क्षेत्र के लोग मेले में शिरकत करते हैं। उन्होंने कहा कि इस दौरान मुथल, करेरी,खलोगी कमांद लोग रात को 1बजे के करीब आग में मशाल जलाकर अश्लील जुमलो गा कर कमांद में पहुंचते हैं।अश्लील जुमलों से असूर शक्ति क्षीण हो जाती है, उन्होंने कहा कि यह मेला देवता नारायण और पराशर के समान में मनाया जाता है। उन्होंने कहा कि सुबह 4 बजे के करीब देवते के प्रागण में जाग को जलाया जाता है। उन्होंने कहा कि कमांद गांव के लोग लकड़ियां इकट्ठा करते हैं और उसे खड़ा किया जाता है जो कि 25 से 30फुट के करीव होती है। और मशालों साथ देवता नारायण का गुर उसको जलाता है और इस दौरान देवता के गुर देव खेल करते हैं और दोनों देवता के रथ जाग के चारों ओर हुलकी करते हैं।