तीर्थन घाटी के प्राचीनतम मेले और त्यौहार कर रहे है पर्यटकों को आकर्षित
बाहरी राज्यों से आए पर्यटकों ने भी मुखौटा नृत्य देखने का लिया खूब लुत्फ।
तीर्थन घाटी के प्राचीनतम मेले और त्यौहार कर रहे है पर्यटकों को आकर्षित
तीन दिनों तक धूमधाम और हर्षोल्लास से मनाए गए फागली उत्सव का समापन
न्यूज मिशन
तीर्थन घाटी गुशैनी बंजार
(परस राम भारती) हिमाचल प्रदेश की प्राचीनतम परम्पराए, मेले और त्यौहार यहां के सांस्कृतिक विरासत की पहचान है। यहां के लोग इन सांस्कृतिक परम्पराओं और मूल्यों को बनाए रखने के लिए प्रशंसा के पात्र है। मेलों और त्यौहारों के माध्यम से ही लोगों के आपसी सम्वन्ध मजबूत होते है। कुल्लू जिला की तीर्थन घाटी में भी साल भर अनेक मेलों और धार्मिक उत्सवों का आयोजन किया जाता है जो यहां की सांस्कृतिक समृद्धि को बखूबी दर्शाता है।
तीर्थन घाटी के लगभग हर गांव में साल भर छोटे छोटे मेलों का आयोजन होता रहता है। ये मेले और त्यौहार यहां के लोगों के हर्ष उल्लास और खुशी का प्रतीक है। फाल्गुन मास की सक्रान्ति के आरम्भ होते ही तीर्थन घाटी के कई गांव में फागली मुखौटा नृत्य का आयोजन किया जाता है। कुछ गांव में यह फागली उत्सव एक दिन तथा कई गांव में दो और तीन दिनों तक यह त्यौहार धूमधाम और हर्षोल्लास से मनाया जाता है। यहां के लोग अपने ग्राम देवता पर अटूट आस्था रखते है। साल भर तक समय समय पर बर्षा, अच्छी फसल, सुख समृद्धि या बुरी आत्माओं को भगाने के लिए लोग अपने ग्राम देवता की पूजा अर्चना करते है। इसके पश्चात मेलों और त्योहारों का आयोजन करके भिन्न भिन्न लोकनृत्य पेश करके नाच गाना करते है।
हर वर्ष की भांति इस वार भी तीर्थन घाटी के पेखड़ी, नाहीं, तिंदर, काउंचा, डिंगचा, सरची, जमाला, फरयाडी, कलवारी, बशीर और शिरीकोट आदि गांवों तीन दिनों तक फागली उत्सव बड़े धूमधाम और हर्षोल्लास से मनाया गया। जिसका आज समापन हो गया है। सैंकड़ों स्थानीय लोगों के अलावा बाहरी राज्यों से आए कई पर्यटकों ने भी इस उत्सव को देखने का खूब लुत्फ उठाया। कुछ पर्यटक इस पूरे मुखोटा नृत्य को अपने कैमरों में कैद करते रहे। विभिन्न राज्यों पंजाब, राजस्थान, पश्चिमी बंगाल दिल्ली, हरियाणा से आए पर्यटकों ने कहा कि ये सभी पहली बार ही तीर्थन घाटी में घूमने आए हैं। इनके अनुसार जितना उन्होंने घाटी के बारे में पड़ा और सुना था उससे कहीं ज्यादा पाया है। यहां का मुखौटा नृत्य इन्हे खूब पसन्द आया है।
तीर्थन घाटी के मुखौटा उत्सव फागली में स्थानीय गांव से अलग अलग परिवार के पुरुष सदस्य अपने अपने मुँह में विशेष किस्म के प्राचीनतम मुखौटे लगाते है और एक विशेष किस्म का ही पहनावा पहनते हैं। हर गांव में पहने जाने वाले मुखोटों तथा पहनावे में कई किस्म की विभिन्नता पाई जाती है इसके अलावा हर गांव में आयोजित किए जाने वाले मेलों की परम्पराएं, मान्यताए और तौर तरीके भी अलग अलग होते है। फागली उत्सव के दौरान दो दिन तक मुखोटा धारण किए हुए मडहले हर घर व गांव की परिक्रमा गाजे बाजे के साथ करते हैं । तथा अंतिम दिन देव पूजा अर्चना के पश्चात देवता के गुर के माध्यम से राक्षसी प्रवृति प्रेत आत्माओं को गांव से बाहर दूर भगाने की परंपरा निभाई जाती है। इस उत्सव में कुछ स्थानों पर स्त्रियों को नृत्य देखना वर्जित होता है क्योंकि इस में अश्लील गीतों के साथ गालियाँ देकर अश्लील हरकतें भी की जाती है।
इस उत्सव में पहले दिन छोटी फागली मनाई जाती है जिसमें एक सीमित क्षेत्र तक ही नृत्य एवं परिक्रमा की जाती है और दूसरे दिन बड़ी फागली का आयोजन होता है जिसमे मुखौटे पहने हुए मंडयाले गांव के हर घर में प्रवेश करके सुख समृद्धि का आशिर्वाद देते है।इसके अलावा इस उत्सव के दौरान पूरे गांव में कई प्रकार के पारम्परिक व्यंजन भी बनाए जाते है जिसमें चिलड्डू विशेष तौर पर बनाया व खिलाया जाता है। शाम के समय देवता के मैदान में भव्य नाटी का आयोजन होता है जिसमें स्त्री व पुरुष सामूहिक नृत्य करते है। बाजे गाजे की धुन के बीच इस नृत्य को देखने में शामिल हर बच्चे, बूढ़े, युवक व युवतियों के शरीर में भी अपने आप नृत्य की थिरकन सी पैदा होने लगती है।
तीर्थन घाटी के समाजसेवी एवं वरिष्ठ पत्रकार दौलत भारती का कहना है कि विश्व धरोहर तीर्थन घाटी में प्राकृतिक सुन्दरता और संसाधनों के अलावा यहां की प्राचीनतम संस्कृति का भी खजाना भरा पड़ा है सिर्फ इसे संजोने और संवारने की आवश्यकता है। इनके अनुसार तीर्थन घाटी के मेले और त्यौहार भी यहाँ पर पर्यटकों के आकर्षण का कारण बन सकते है।
इनका कहना है कि तीर्थन घाटी का प्राकृतिक सौन्दर्य यहाँ की वादियाँ और प्राचीनतम संस्कृति वहुत ही समृद्ध है जिस कारण यहाँ पर पर्यटन की आपार सम्भानाएँ भरी पड़ी है।