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देवभूमि कुल्लू में 20 भादों के पवित्र पर्व पर हजारों श्रद्वालुओं ने लगाई आस्था की डूबकी

मणिकर्ण, बशिष्ठ,गड्सा व जिया संगम में उमड़ी श्रद्वालुओं की भीड़

 

देवी देवताओ ने पवित्र संगम में विधिविधान के साथ मंत्रोउच्चारण के साथ किया शाही स्नान

न्यूज मिशन
कुल्लू
देवभूमि कुल्लू जिला में 20 भादों के पर्व पर विभिन्न तीर्थ स्थलों व संगम स्थलों पर श्रद्वालुओं ने लगाई आस्था की डूबकी लगाई जिसमें मणिकर्ण, बशिष्ठ, जिया संगम सरयोलसर, खीरगंगा, जिया संगम, क्लाथ, ,खलाड़ा नाला, तारापुर गढ़, अंजनी महादेव आदि में श्रद्धालुओं ने आस्था की डुबकी लगाई। पवित्र स्नान के लिए सोमवार सुबह ही तीर्थ स्थलों पर श्रद्धालुओं की भीड़ लगना शुरू हो गई। जबकि जिया संगम पर पवित्र स्नान का सिलसिला प्रात 4 बजे से शुरू हुआ जो शाम तक चलता रहता हैं। इस दौरान देवी देवताओं ने भी विधिवत पूजा अर्चना के बाद मंत्रो उच्चारण के साथ शाही स्नान किया। ऐसी मान्यताए है कि 20 भादों के दिन पहाड़ों में विभिन्न प्रकार की जड़ी बूटियां तैयार होकर झरनो, नालो नदियों के जल में समाती है जिससे 20 भादों के तीर्थ स्थलों पर स्नान करने से कई रोगों से मुक्ति मिल जाती है। भारतीय समाज में देश के अंदर बहने वाली नदियों को सिर्फ जीवनदायिनी ही नहीं बल्कि कष्ठ निवारक भी माना गया है। ऊंचे-ऊंचे विशालकाय पहाड़ों से निकलने वाली नदियों में शारीरिक कष्टों को दूर करने की भी शक्ति होती है ऐसी मान्यता है। देवभूमि कुल्लू जिला में भी ब्यास नदी सहित घाटी के नदी नालों और झरनों में भी यह शक्ति आज भी मौजूद है। खासकर वर्ष में 20 भादो के दिन को लेकर देव समाज में खासी मान्यता है। कहा जाता है कि 20 भादों के दिन नदी नालों के संगम स्थलों में स्नान करने से शारीरिक कष्टों के साथ साथ पापों का भी नाश होता है
स्थानीय निवासी शांता ठाकुर ने कहाकि सुबह से लेकर तमाम संगम स्थलों और झरनों और झीलों में हजारों लोगों ने पवित्र स्नान किया इतना ही नहीं घाटी के देवी देवताओं ने भी अपने हारियानों के साथ स्नान किया। कहा जाता है कि इस दौरान पहाड़ों में उगने वाली औषधीय जड़ी बूटियों का रस बरसात के पानी में घुलकर नदियों में जाता है और यह औषधीय रस शारीरिक कष्टों के निवारण के लिए रामबाण माना जाता है। यह भी मान्यता है कि देवी देवता भी हजारों जड़ी बूटियों के रस युक्त इस पानी में अपने आप को भी पवित्र करते हैं जिससे उनकी शक्तियां बरकरार रहती है। देव समाज के लोगों की माने तो यह वह समय है जब पहाड़ों में उगने वाली औषधीय जड़ी बूटियों में रस आने लगता है और बरसात होने के कारण यह रस पानी के साथ घुलकर नदी नालों में जाता है।

शमशी  के स्थानीय निवासी अमन भल्ला ने कहाकि देवभूमि कुल्लू जिला में 20 भादों का पवित्र पर्व हषोल्लास  के साथ मनाया जा रहा है।उन्होंने कहाकि कुल्लू जिला मुख्यालय से 8 किलोमीटर दूर जिया में व्यास व पार्वती नदी के संगम स्थल पर बड़ी संख्या में लोग आस्था की डूबकी लग रहे है। उन्होंने कहाकि जिया संगम स्थल घाट के रूप में विकसित करना चाहिए जिससे यहां पर श्रद्वालुओं को स्नान के लिए उचित व्यवस्था हो सके।उन्होंने कहाकि यहां पर सालभर लोग पवित्र स्नान के लिए आते है।जिससे लोगों की आस्था का पवित्र तीर्थ स्थल में श्रद्वालुओं को उचित सुविधाए उनलब्ध हो सके

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