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यूक्रेन के कीव से वापिस लौटा ऊना का वरुण जोशी

कहा बॉर्डर तक पहुंचने में 2 हजार डॉलर करने पड़े खर्च। 

यूक्रेन छोड़ने में ही लग गए 2 दिन, 16 अन्य छात्रों के साथ कीव से बॉर्डर तक पहुंचा था वरुण

 

न्यूज़ मिशन

ऊना

रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध के चलते भारत सरकार द्वारा ऑपरेशन गंगा के तहत फंसे हुए भारतीय नागरिकों को स्वदेश वापसी की जा रही है हिमाचल प्रदेश भी सैकड़ों छात्र यूक्रेन से वापस वतन लौट रहे भारतीय छात्र छात्राओं के अलग अलग अनुभव सुनने को मिल रहे हैं। किसी की कनपटी पर बंदूक रखकर उसकी पहचान पूछी गई तो किसी ने आसमान से बरस से बमों की बारिश देख हौसला छोड़ दिया। लेकिन इन सबके बावजूद सकुशल घर लौटे छात्र-छात्राएं राहत की सांस ले रहे हैं। इसी बीच ऊना की रक्कड़ कालोनी का वरुण जोशी भी आखिरकार यूक्रेन के कीव से सकुशल अपने घर वापिस पहुंच गया है। यूक्रेन में एमबीबीएस के अंतिम वर्ष के छात्र वरुण जोशी ने अपने साथ अन्य 16 छात्रों को भी बॉर्डर पार करवाने में मदद की। वरुण ने बताया कि 17 छात्रों को बॉर्डर तक पहुंचने में यूक्रेन सरकार द्वारा यातायात फ्री करने के बाबजूद भी 2 हजार डॉलर खर्च करने पड़े। वरुण ने बताया कि भारत सरकार द्वारा स्लोवाकिया पहुंचने के बाद ही उनकी मदद की गई जबकि कीव से स्लोवाकिया तक वो अपने स्तर पर ही पहुंचे थे।

रूस और यूक्रेन में छिड़े युद्ध के बाद यूक्रेन में एमबीबीएस कर अपना भविष्य संवारने गए छात्रों को आखिरकार अपने घरों को लौटना पड़ गया है। इसी बीच ऊना के रक्कड़ कालोनी का रहने वाला वरुण जोशी भी सकुशल अपने घर लौट आया है। यूक्रेन की स्थिति के बारे में बताते हुए वरुण जोशी ने बताया कि वो 28 फरवरी को अपने जूनियर्स को लेकर यूक्रेन से भारत के लिए निकले थे। लेकिन वहां पर माहौल कुछ ऐसा था कि कर्फ्यू लगातार जारी था जिसके चलते परिवहन सेवाएं बिल्कुल भी नहीं मिल पा रही थी। किसी तरह यह भारतीय छात्रों के साथ रेलवे स्टेशन तक पहुंचे, लेकिन वहां का मंज़र देखते हैं उनके पैरों तले से उस वक्त सरक गई, जब रेलवे स्टेशन पर पहले से ही करीब दो लाख के आसपास लोग ट्रेन का इंतजार करते हुए दिखाई दिए। जिसके चलते ट्रेन के आसपास फटकने तक का भी मौका नहीं मिल पा रहा था। हालांकि करीब 12 घंटे के बाद जाकर वह रेलवे स्टेशन के अंदर प्रवेश कर पाए। वरुण बताते हैं कि हालांकि यूक्रेन की सरकार द्वारा सब कुछ फ्री कर दिया गया था ट्रैवलिंग के लिए किसी प्रकार के टिकट की जरूरत नहीं थी। लेकिन फिर भी उन्हें अपने साथियों सहित करीब 75 हज़ार रुपये खर्च करने पड़े। इसके बाद लबीब से करीब 1000 डॉलर्स खर्च करके किराए पर कैब ली और स्लोवाकिया बॉर्डर के पास पहुंचे। वरुण जोशी बताते हैं कि वह 24 फरवरी को निकलने का प्रयास कर रहे थे लेकिन 28 फरवरी को निकल पाए जिसका मुख्य कारण अक्सर बाहर से सुनाई देने वाली बमबारी और गोलियों की आवाजें थी। बमों और मिसाइल की बारिश देखकर सभी छात्र-छात्राओं में डर बैठ गया था, यह पता नहीं चल पा रहा था कि आखिर अब करना क्या है। केवल मात्र यूक्रेन ही नागरिक ही नहीं बल्कि विदेशी भी वहां पर बुरी तरह भयभीत थे। रूस के हमलों से जूझ रहे यूक्रेन की तारीफ करना भारतीय छात्र छात्राएं बिल्कुल भी नहीं भूलते हैं, जिनके लिए यूक्रेनी सरकार ने जगह-जगह उनके लिए हर चीज का प्रबंध किया था। वहीँ वरुण ने बताया कि स्लोवाकिया बॉर्डर पार करने के बाद ही उन्हें और साथियों को भारत सरकार की मदद मिल पाई।

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