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तीर्थन घाटी में वैशाखी मेले की धूम, उमड़ा आस्था का सैलाब।

शर्ची गांव में धूमधाम से मनाया गया पडेई उत्सव, प्राचीनतम परम्परा का किया निर्वहन।

 

प्राकृतिक सौंदर्य के साथ पर्यटकों को खूब भा रहे हैं यहां के प्राचीनतम मेले और त्यौहार।

घाटी के विभिन्न गांव में सप्ताह भर चलता है बैसाखी उत्सव, सैलानी ले रहे हैं मेलों का लुत्फ

न्यूज मिशन

तीर्थन घाटी गुशैनी बंजार (परस राम भारती):- हिमाचल प्रदेश के मेले एवं त्यौहार यहां की शान और पहचान है। यहां पर प्रत्येक नई ऋतु आने पर कोई ना कोई मेला या त्योहार मनाया जाता है। पहाड़ के लोगों ने लुप्त हो रही इन प्राचीनतम सांस्कृतिक परंपराओं को जैसे तैसे करके जीवित रखा है।

जिला कुल्लू के उपमंडल बंजार की तीर्थन घाटी में भी हर वर्ष की भांति अलग-अलग गांव में 14 से 20 अप्रैल तक परंपरागत वैशाखी मेलों का आयोजन होता है। इसी कड़ी में हर साल की भांति शर्ची गांव में भी 18 अप्रैल को वैशाखी पर्व बड़ी धुमधाम के साथ मनाया गया। शर्ची गांव का यह पारंपरिक मेला पडेई जाच के नाम से मशहूर है। यह उत्सव शरद ऋतु की विदाई और गर्मी के आगमन पर बहारों के मौसम में नई फसलों के पकने की खुशी में मनाया जाता है। देव परंपरा के अनुसार प्रतिवर्ष 5 प्रविष्टि बैशाख को शर्ची गांव में पढ़ई मेला मनाने का रिवाज है। यह त्यौहार सदियों से लगातार हर वर्ष मनाया जाता रहा है जिसमें गांव के हर समुदाय के लोग हिस्सा लेते हैं। इस दिन अपने गांव से बाहर रहने वाले अथवा गांव के सभी नौकरीपेशा लोग भी अपने घर पहुंच जाते है और इस मेले में शामिल होते है।

शर्ची गांव में मनाए जाने वाले इस एक दिवसीय पडेई मेले की शुरुआत तीर्थन घाटी की आराध्य देवी माता गाड़ा दुर्गा के आगमन से होती है। हर साल की तरह इस बार भी तीर्थन घाटी के शर्ची गांव में वैशाखी पडेई का पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया गया। इस मेले में सैंकड़ों स्थानीय लोगों के अलावा बाहरी राज्यों से आए पर्यटकों ने भी शिरकत की है। लोगों ने माता गाड़ा दुर्गा के दर्शन करके माता को जरी फूल अर्पित किए और आशीर्वाद लिया तथा सुख समृद्धि की कामना की है।

इस पड़ेई मेले की शुरूआत सुबह से ही हो जाती है जो प्रातः ही शर्ची जमाला के ग्रामीण जंगल में जाकर एक सीधा और लम्बा पेड़ काटकर लाते है जिसे सैंकड़ों लोगों द्धारा जंगल से घसीट कर और कन्धों में उठाकर मेला स्थल में पहुंचाया जाता है। सभी लोग परम्परा के अनुसार जंगल में पेड़ लाने के लिए बाजे गाजे के साथ जाते है और दोपहर तक जंगल से बापिस आकर जमाला गांव पहुंच के भोजन करते है। करीब 70 फुट लम्बे पेड़ को जंगल से उठा कर लाना और मेला स्थल में खड़ा करना इस मेले का मुख्य आकर्षण होता है।

लोग जंगल से जिस पेड़ काटकर लाते है उसे किनारे में रखकर पहले वहां पर गत वर्ष गाड़े गए पेड़ को गिरा दिया जाता है तत्पश्चात जंगल से लाए गए पेड़ को खड़ा किया जाता है। यह सब कार्य देव परंपरा की विधि विधान के अनुसार ही किया जाता है। इस पुरे उत्सव के दौरान तीर्थन घाटी की आराध्य देवी माता गाड़ा दुर्गा और देवता शेषनाग अपने हारीआनों समेत लाव लश्कर के साथ और बाध्ययंत्रो की सुरमई धुन के बीच शर्ची गांव के मेला स्थल पर विराजमान रहते है।

तीर्थन घाटी के शरची, जमाला और बाड़ासारी की वादियां यहां के प्रमुख दर्शनीय एवं रमणीक स्थलों मे से एक उभरता हुआ पर्यटन स्थल है। यहां पर चारों ओर वृक्षों से ढकी ऊँची पर्वत शृंखलाएँ, कई थाच, चारागाह व खेत खलिहान यहाँ के नजारे को और भी खूबसूरत और रमणीक बनाते है। गर्मियों के मौसम मे यहां खूब हरियाली और सर्दियों के मौसम में शरची जमाला सहित आसपास के क्षेत्र बर्फबारी से लक दक रहते है जो यहां के नजारे को और भी लुभावना और मनमोहक बनाते है।
यहां के शर्ची जमाला और बाड़ासारी की वादियां पर्यटकों के लिए आकर्षण का केन्द्र बनी हुई है। तीर्थन घाटी में आने वाला हर पर्यटक इन वादियों को निहारे विना नहीं जाता है।

इस बार बाहरी राज्यों से आए हुए सैलानियों ने भी मेला देखने का खूब लुत्फ उठाया है। पश्चिमी बंगाल राज्य से तीर्थन घाटी में घूमने फिरने आए पर्यटकों ज्योतिर्मोय, कोस्तव, कौशिक, निर्मल्यो, अनिकेत, सुवागत, कोयल, अर्णव और अमृता का कहना है कि अनुपम प्राकृतिक सौंदर्य के साथ साथ उन्हें यहां की प्राचीनतम संस्कृति खूब पसंद आई है। इनका कहना है कि सर्ची गांव का पडेई मेला देखना इनके लिए एक अनूठा अनुभव रहा है। कई पर्यटक इस उत्सव की झलकियां और यहां की वादियों को अपने कैमरा में कैद करके ले गए है।

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